वंशगुरु - वंश, कुल, परिवार, खानदान को जानने के लिए वंशगुरू की मदद पैतृक वंशावली के माध्यम से ली जाती है। वंशावली लेखन की परंपरा वंशगुरुओं के पास हजारों साल पुरानी देखी जा सकती है। यह हस्तलिखित पांडुलिपि (मूडिया) अपने आप में विशिष्ट ग्रंथ है इसके द्वारा समाज की वंश - परंपरा, रीति - रिवाज, संस्कृति, गोत्र, गोत एवम् शाखा-प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता,भैरव-जीवन मृत्यु, इतिहास आदि विशेषता की व्याख्या जानी जाती है। वंशावली लेखन की विधा आदिकाल से ही कलम और काली स्याही से पेड़ों को छाल, ताम्रपत्र, भोजपत्र, वर्तमान में कागजी बहियों में पांडुलिपि एवं हिंदी, अंग्रेजी में लिखी जाती है जिसे वंशगुरुओं के अलावा कोई भी लिख पढ़ नहीं सकता है। अपनी वंशावली को हमारे माध्यम से जानें और इस अनुपम धरोहर को प्राप्त कर गर्व महसूस करें।
इस प्रकार कुल छत्तीस शाखाओं की वर्तमान में अनेकों शाखाएं हो गई है। छत्तीस नियम पालन करने से क्षत्रिय एवं राजपुत्र-राजपूताना से राजपूत कहलाए।
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